Sunday, April 28, 2024
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देश के 600 वकीलों ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लिखा पत्र, कहा- न्यायपालिका पर दबाव बनाने का काम कर रहा एक खास समूह

नई दिल्ली : देश के जाने-माने 500 से ज्यादा वकीलों ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है. पत्र लिखने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से लेकर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा समेत तमाम प्रमुख नाम शामिल हैं. इन वकीलों ने चिट्ठी में न्यापालिका की अखंडता पर खतरे को लेकर चिंता जताई है. इन वकीलों का कहना है कि कुछ खास समूह न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं और कोर्ट के फैसलों पर असर डाल रहे हैं.
पत्र में कहा गया है कि यह समूह राजनीतिक एजेडों के साथ आधारहीन आरोप लगा रहे हैं और न्यायपालिका की छवि के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं. चिट्ठी में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे राजनीतिक चेहरों से जुड़े केसों में यह हथकंडे जाहिर तौर पर दिखते हैं. ऐसे मामलों में अदालती फैसलों को प्रभावित करने और न्यायपालिका को बदनाम करने के प्रयास सबसे ज्यादा स्पष्ट होते हैं. पत्र में कहा गया है कि कुछ खास समूह कथित तौर पर झूठे नैरेटिव गढ़ कर न्यायपालिका के कामकाज की गलत छवि पेश करना चाहते हैं. यह समूह मौजूदा वक्त की अदालतों की तुलना कोट्र्स के एक कथित वर्णिम युग से करते हैं. ताकि न्यायिक फैसलों को प्रभावित किया जा सके और न्यापालिका पर जनता के यकीन को डिगाया जा सके.

कुछ वकीलों की जजों को प्रभावित करने की कोशिश

आधिकारिक सूत्रों द्वारा साझा किए गए पत्र में बिना नाम लिए वकीलों के एक वर्ग पर निशाना साधा गया है. इसमें आरोप लगाया गया है कि वे दिन में नेताओं का बचाव करते हैं और फिर रात में मीडिया के जरिए जजों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं.

न्यायपालिका पर खतरा

राजनीतिक और पेशेवर दबाव से न्यायपालिका को बचाना शीर्षक वाली इस चिट्ठी में 600 से ज्यादा वकीलों के नाम हैं. इनमें आदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होला और स्वरूपमा चतुर्वेदी जैसे अन्य प्रमुख नाम भी शामिल हैं. वकीलों ने इस पत्र में किसी खास मामले का जिक्र तो नहीं किया है. हालांकि यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब अदालतें विपक्षी नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के कई बड़े आपराधिक मामलों से सुनवाई कर रही हैं. विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर अपने राजनीतिक प्रतिशोध के तहत उनके नेताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया है. वहीं सत्तासीन भाजपा ने इस आरोप का खंडन किया है.

अदालतों की गरिमा पर आघात करने वाली कहानियां गढ़ी गईं

पत्र लिखने वाले वकीलों ने कहा है कि इस समूह ने बेंच फिक्सिंग की पूरी कहानी गढ़ी है, जो न सिर्फ अपमानजनक है बल्कि अदालतों के सम्मान और गरिमा पर आघात है. इसमें कहा गया. ये लोग अपनी अदालतों की तुलना उन देशों से करने के स्तर तक चले गए जहां कानून का कोई शासन नहीं है. इन अधिवक्ताओं ने कहा है कि इन आलोचकों का रवैया कुछ ऐसा है कि जिन फैसलों से वे सहमत होते हैं. उनकी तारीफ करते हैं. लेकिन उनकी असहमति वाले किसी भी फैसले की वे अवमानना करते हैं. पत्र के मुताबिक, यह दोहरा व्यवहार उस सम्मान के लिए नुकसानदायक है जो किसी भी आम आदमी को हमारी कानून प्रणाली के लिए होना चाहिए.

इस तरह के बर्ताव के समय पर सवाल उठाते हुए वकीलों ने कहा कि यह सब तब हो रहा है. जब देश चुनाव की तरफ बढ़ रहा है. पत्र में अधिवक्ताओं ने लिखा है. हमें 2018-2019 के इसी तरह की हरकतें याद आती हैं. जब उन्होंने गलत चर्चा गढऩे के साथ ही अपनी ‘हिट एंड रन’ गतिविधियों को अंजाम दिया. निजी और राजनीतिक कारणों से अदालतों का अनादर करने और उन्हें गुमराह करने की कोशिशों की किसी भी हालत में इजाजत नहीं दी जा सकती. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मजबूत बने रहने और अदालतों को इन कथित हमलों से बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने की अपील की. चिट्ठी में आगे कहा गया, चुप रहने या कुछ नहीं करने से उन लोगों को ताकत मिल सकती है. जो न्यायपालिका को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं. यह गरिमापूर्ण तरीके से शांत रहने का समय नहीं है. क्योंकि कुछ साल से ऐसे प्रयास हो रहे हैं और लगातार हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे कठिन समय में देश के चीफ जस्टिस का नेतृत्व अहम है.

राजनेताओं का दोहरा चरित्र

ये देखकर हैरत होती है कि राजनेता किसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और फिर अदालतों में उन्हें बचाने पहुंच जाते हैं. अगर अदालत का फैसला उनके पक्ष में नहीं जाता है तो वे कोर्ट के भीतर ही कोर्ट की आलोचना करते हैं और फिर बाद में मीडिया में पहुंच जाते हैं. आम आदमी के मन में हमारे लिए जो सम्मान है. उसके लिए ये दोहरा चरित्र खतरा है.

पीठ पीछे हमला, झूठी जानकारियां

कुछ लोग अपने केस से जुड़े न्यायाधीशों के बारे में झूठी जानकारियां सोशल मीडिया पर फैलाते हैं. ऐसा वे अपने केस में अपने ढंग से फैसले का दबाव बनाने के लिए करते हैं. ये हमारी अदालतों की पारदर्शिता के लिए खतरा है और कानूनी उसूलों पर हमला है. इनकी टाइमिंग भी तय होती है. जब देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है, तब ये ऐसा कर रहे हैं। हमने यह चीज 2018-19 में भी देखी थी.

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