नई-दिल्ली : नए साल की शुरुआत के साथ ही कई बैंकों ने एफडी दरों में बदलाव करना शुरू कर दिया है. अब तक कई बैंक FD की दरें बढ़ा चुके हैं. अगर आप FD में निवेश करने की सोच रहे हैं तो यह आपके लिए बहुत अच्छा मौका है.
पंजाब नेशनल बैंक से लेकर बैंक ऑफ बड़ौदा और फेडरल बैंक तक ने FD पर ब्याज दरों में संशोधन किया है. फिलहाल एफडी पर 8.40 फीसदी तक ब्याज मिलता है। आइए जानते हैं कौन सा बैंक एफडी (Fixed Deposit) पर कितना ब्याज दे रहा है.
पंजाब नेशनल बैंक ने इस महीने 2 बार एफडी दरों में संशोधन किया है. पंजाब नेशनल बैंक ने हाल ही में एफडी दरों में 80 बेसिस प्वाइंट यानी 0.80% की बढ़ोतरी की है. यह बढ़ोतरी 300 दिनों की एफडी पर की गई है. पहले इस समय के लिए Interest Rate करीब 6.25% थी. अब इसे बढ़ाकर 7.05% कर दिया गया है.
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वरिष्ठ नागरिकों के लिए ब्याज दर 7.55% और अति वरिष्ठ नागरिकों के लिए 7.85% है. बाकी अवधि की बात करें तो बैंक द्वारा 3.50 फीसदी से लेकर 7.25 फीसदी तक ब्याज दिया जा रहा है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह सीमा 4% से 7.75% तक है. जबकि अति वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह 4.30% से 8.05% तक है.
अगर आप फेडरल बैंक में एफडी कराना चाहते हैं तो आपको 8.25 फीसदी तक ब्याज मिलेगा. 500 दिन की एफडी पर 7.75 फीसदी की ब्याज दर दी जा रही है. वरिष्ठ लोगों के लिए यह इंट्रेस्ट रेट 8.25% है.
अगर बाकी अवधि के लिए ब्याज दरों की बात करें तो बैंक द्वारा 7 दिनों से लेकर 10 साल तक के लिए 3% से लेकर 7.75% तक का ब्याज दिया जा रहा है. जबकि वरिष्ठ नागरिकों के लिए ये दरें 3.5% से 8.25% तक हैं. ये दरें 17 जनवरी से प्रभावी हैं.
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आईडीबीआई बैंक ने भी एफडी पर ब्याज दरों में संशोधन किया है. अब यह बैंक 7 दिन से लेकर 10 साल तक की अवधि की एफडी पर 3 फीसदी से लेकर 7% तक ब्याज दर ऑफर कर रहा है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए ये दरें 3.5% से 7.5% तक हैं. सभी दरें 17 जनवरी से ही लागू कर दी गई हैं.
बैंक ऑफ बड़ौदा ने हाल ही में एक खास शॉर्ट टर्म FD लॉन्च की है. इस Fixed Deposit में जनता को ज्यादा ब्याज रेट दी जा रही है. ये ब्याज दरें 15 जनवरी से लागू हो गई हैं और 2 करोड़ रुपये तक की एफडी पर लागू होंगी. बैंक ने एक नई अवधि की एफडी लॉन्च की है. जो 300 दिनों के लिए है. जिसे ‘360D (bob360)’ के नाम से जाना जा रहा है.
इसके तहत लोगों को 7.10% ब्याज दिया जा रहा है. वहीं वरिष्ठ नागरिकों को इस योजना के तहत 7.60% ब्याज मिल रहा है. बाकी अवधि की बात करें तो बैंक 7 दिन से लेकर 10 साल तक की अवधि के लिए 4.45% से लेकर 7.25% तक ब्याज दरें ऑफर कर रहा है. जबकि वरिष्ठ नागरिकों को 4.75% से लेकर 7.75% तक ब्याज दिया जा रहा है.
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ब्याज दरों में बदलाव के बाद यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 2 करोड़ रुपये से कम पर अलग-अलग अवधि के लिए 3.5% से 7.25% तक ब्याज दे रहा है. ये नई ब्याज दरें 19 जनवरी से लागू हो गई हैं. बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, सभी वरिष्ठ नागरिकों को 0.50% का एक्स्ट्रा ब्याज दिया जा रहा है.
अगर आप कर्नाटक बैंक में FD कराना चाहते हैं तो आपको 3.5% से लेकर 7.25% तक ब्याज मिलेगा. ये ब्याज दरें 2 करोड़ रुपये से कम की एफडी के लिए हैं. ये दरें 20 जनवरी से लागू हो गई हैं. वरिष्ठ नागरिकों को 0.50% एक्स्ट्रा ब्याज मिलेगा.
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ज्यादा ब्याज दरों के बावजूद फिक्स्ड डिपॉजिट के कुछ नुकसान भी हैं
फिक्स्ड डिपॉजिट पूर्व निर्धारित इंटरेस्ट रेट्स ऑफर करते हैं. जिसका मतलब है कि इंटरेस्ट रेट्स बढ़ने पर भी आपका रिटर्न जो पहले से तय है उससे ज्यादा नहीं मिलेगा. जिसका नतीजा यह हो सकता है कि महंगाई बढ़ने पर आपके रिटर्न का वास्तविक मूल्य समय के साथ घट सकता है.
एफडी आमतौर पर एक तय वक़्त के लिए होती है और वक़्त से पहले निकासी पर अक्सर पेनाल्टी या कम इंटरेस्ट रेट्स लगाए जाते हैं. अगर आपको कोई एमर्जेंसी है और आपको पैसा चाहिए तो आपको वक़्त पर नहीं मिल पाएगा या तो आपको उसके लिए पेनाल्टी देनी होगी. बिना किसी नुकसान अपनी एफडी को खत्म करना आसान नहीं होता है.
एफडी में इन्वेस्टमेंट करने का मतलब है अपने फंड को एक खास वक़्त के लिए बांधना, जो संभावित इन्वेस्टमेंट अपॉर्चुनिटीज के लिए आपकी कैपेसिटी को सीमित कर सकता है जो उच्च रिटर्न दे सकते हैं. अगर इन्वेस्टमेंट के दुसरे रास्ते बेहतर फायदे के आप्शन दे रहे हैं तो फिक्स्ड डिपॉजिट की शर्तों की वजह आप उनसे चूक सकते हैं.
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इन्फ्लेशन वक़्त के साथ पैसे की परचेंजिंग पॉवर को खत्म कर देती है. एफडी, अपने फिक्स रिटर्न के साथ, हमेशा इन्फ्लेशन के साथ तालमेल नहीं रख सकती है. अगर इन्फ्लेशन रेट आपकी एफडी द्वारा दी जाने वाली इंटरेस्ट रेट से ज्यादा हो जाती है, तो आपका वास्तविक रिटर्न निगेटिव होगा. जिससे आपके इन्वेस्टमेंट का मूल्य प्रभावी रूप से कम हो जाएगा.
फिक्स्ड डिपॉजिट से कमाया गया इंटरेस्ट आपके इनकम टैक्स स्लैब के मुताबिक टैक्सेबल है. इससे आपका कुल रिटर्न कम हो सकता है, खासकर अगर आप हायर टैक्स दायरे में आते हैं. इन्वेस्टमेंट पर नेट रिटर्न का आकलन करने के लिए एफडी इनकम पर टैक्स के प्रभाव पर विचार करना महत्वपूर्ण है.
जब जमा रकम की बात आती है तो एफडी में अक्सर लचीलेपन की कमी होती है. बैंकों के पास न्यूनतम जमा जरूरतें हो सकती हैं, जिससे छोटी तादाद में इन्वेस्टमेंट करना मुश्किल हो जाएगा. यह उन व्यक्तियों के लिए मुश्किल हो सकती है जिनके पास सीमित बचत है या जो कई तरीकों से अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो में डायवर्फिकेशन लाना चाहते हैं.
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मैच्योरिटी पर, कई लोग एफडी मूलधन और ब्याज को फिर से इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं. लेकिन, जब री-इन्वेस्टमेंट के इंटरेस्ट रेट्स मूल एफडी से कम होते हैं तो इससे रिटर्न कम हो सकता है. री-इन्वेस्टमेंट रिस्क बेहद फिक्र की बात है. खासकर गिरती इंटरेस्ट रेट्स की अवधि के दौरान.
एफडी को सेक्योर्ड इन्वेस्टमेंट माना जाता है. फिर भी डिफ़ॉल्ट का थोड़ा रिस्क होता है. खासकर जब कम क्रेडिट रेटिंग वाले बैंकों या फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस में इन्वेस्टमेंट किया जाता है. ऐसे मामलों में अगर संस्थान फेल हो जाता है तो आप अपनी मूल रकम खो सकते हैं. भले ही वह एक निश्चित सीमा तक बीमाकृत हो.
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