ताजा खबर न्यूज डेस्क। सांस (Breath) ज्यादा रोकने से कोरोना का खतरा बढ़ सकता है। भारत में प्राणायाम में तो सांस (Breath) को रोकने की ही कला सिखाई जाती है। ऐसे सांस (Breath) रोकने वाले प्रणायाम लाभदायक हैं या सांस (Breath) रोकने वाले प्रणायाम हानिकारक। यह अनुसंधान का विषय हो सकता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास (IITM) के एक अध्ययन में पाया गया है कि Sars CoV-2 वायरस से संक्रमित लार की बूंदों को किसी व्यक्ति के फेफड़ों के अंदर तक ले जाने की प्रक्रिया व्यक्ति के सांस रोकने पर बढ़ जाती है। Sars CoV-2 वायरस ही कोविड-19 (COVID-19) का कारण है।

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00 कैसे इसका हुआ खुलासा
डिपार्टमेंट ऑफ एप्लाइड मैकेनिक्स (Department of Applied Mechanics) के प्रोफेसर महेश पंचागनुला के नेतृत्व में रिसर्च स्कॉलर अर्णब कुमार मल्लिक, सौमल्या मुखर्जी की रिसर्च टीम ने यह अनुसंधान किया। इस टीम ने एक प्रयोगशाला में सांस लेने की फ्रीक्वेंसी तैयार की। इसके बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि, कम सांस लेने की आवृत्ति वायरस की उपस्थिति के समय को बढ़ाती है। इस प्रकार वायरस के ठहरने की संभवाना बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप एक्सपोज व्यक्ति में संक्रमण होता है। अध्ययन के परिणाम नवंबर 2020 में प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल, फिजिक्स ऑफ फ्लूइड्स (Peer-Review Journal, Physics of Fluids) में प्रकाशित किए गए थे।
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00 शोध में क्या कुछ आया सामने
शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन से पता चलता है कि कैसे फेफड़ों के विभिन्न आयाम कोविड -19 (COVID-19) के लिए किसी व्यक्ति की संवेदनशीलता को प्रभावित करते हैं। प्रोफेसर महेश पंचागनुला ने कहा, कोविड-19 (COVID-19) ने गहरी पल्मोनोलॉजिकल प्रणालीगत बीमारियों की हमारी समझ में एक अंतर खोला है। हमारा अध्ययन इस रहस्य को उजागर करता है कि कणों को गहरे फेफड़ों में कैसे पहुँचाया और जमा किया जाता है। हमारा अध्ययन भौतिक प्रक्रिया को प्रदर्शित करता है जिसके द्वारा एरोसोल कणों को फेफड़ों की गहरी पीढ़ियों में ले जाया जाता है।
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00 क्या कहते हैं प्रोफेसर पंचागनुला
अपने प्रयोगशाला मॉडल के बारे में बताते हुए महेश पंचागनुला ने कहा, हम फेंफड़ों की यांत्रिकी के बारे में लगातार अध्ययन कर रहे हैं और इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं। कोविड-19 (COVID-19) जैसे संक्रमण छींकने और खांसने से फैलते हैं क्योंकि इस दौरान मुंह से बूंदे बाहर निकलती हैं। हमारी टीम ने छोटी केशिकाओं में बूंदों के संचलन का अध्ययन करके फेफड़े के प्रेत मॉडल में छोटी बूंद की गतिशीलता का अनुकरण किया, जो ब्रोंचियोल्स के समान एक व्यास की थीं। उन्होंने कहा कि अध्ययन के दौरान पानी को फ्लोरोसेंट कणों के साथ मिलाया गया था। इस तरल से उत्पन्न एरोसोल का उपयोग प्रयोगों के लिए एक नेबुलाइजर की मदद से किया गया था। इन फ्लोरोसेंट एरोसोल का उपयोग कोशिकाओं में कणों की गति और जमाव को ट्रैक करने के लिए किया गया था।
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00 मास्क को बताया फायदेमंद
पंचागनुला ने मास्क की महत्ता को समझाते हुए कहा, विज्ञान ने साबित किया है कि सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनना संक्रमण से सुरक्षा के रूप में बेहद फायदेमंद है। मास्क का उपयोग न केवल एक संक्रमित व्यक्ति की लार की बूंदों से बचाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि अन्य लोग इन बूंदों के संपर्क में न आएं। आईआईटी मद्रास का यह अध्ययन फेफड़ों पर कोविड -19 जैसे रोगों के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, श्वसन संक्रमण के लिए बेहतर चिकित्सा और दवाओं के विकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस रिपोर्ट ने हमारे विद्वानों को प्राणायाम पर एक बार फिर से विचार करने को विवश कर दिया है।
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